मोती रत्न कौन धारण करें

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मोती चन्द्र का रत्न है. और ग्रहों में चन्द्र को मन का स्वामी बनाया गया है. 12 लग्नों के लिये चन्द्र रत्न मोती धारण करना निम्न रुप से शुभ या अशुभ रहता है. मोती हो या कोई अन्य रत्न व्यक्ति को अपने लग्न की जांच कराने के बाद ही कोई रत्न धारण करना सर्वथा अनुकुल रहता है. आईए अलग-अलग लग्नों के लिये मोती को धारण करने के फल जानने का प्रयास करते है.

लग्न

मेष लग्न-मोती रत्न

मेष लग्न के लिये चन्द्र चतुर्थ भाव के स्वामी है. इसके साथ ही ये लग्नेश मंगल के मित्र भी है. इसीलिए मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये ये विशेष रुप से शुभ हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को मानसिक शान्ति, मातृ्सुख, विधा प्राप्ति के लिये मोती रत्न धारण करना चाहिए.

वृषभ लग्न-मोती रत्न

वृ्षभ लग्न के लिये चन्द्र तीसरे भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न कदापि नहीं पहना चाहिए.

मिथुन लग्न-मोती रत्न

मिथुन लग्न के व्यक्तियों के लिये चन्द्र दुसरे भाव यानि धन भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न केवल चन्द्र महादशा / अन्तर्दशा में ही धारण करना चाहिए. दूसरे भाव को मारकेश भी कहा जाता है. इसलिये जहां तक संभव हो इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न धारण करने से बचना चाहिए.

कर्क लग्न-मोती रत्न

इस लग्न के लिये चन्द्र लग्नेश होकर सर्वथा शुभ हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को मोती धारण करने से स्वास्थय सुख की प्राप्ति होगी. आयु बढेगी.

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सिंह लग्न-मोती रत्न

सिंह लग्न में चन्द्र बारहवें भाव के स्वामी है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों के लिये मोती धारण करना अनुकुल नहीं है.

कन्या लग्न-मोती रत्न

इस लग्न में कर्क राशि एकादश भाव की राशि बनती है. कर्क राशि स्वामी चन्द्र का रत्न मोती कन्या लग्न के व्यक्तियों को केवल चन्द्र महादशा और अन्तर्दशा में ही धारण करना चाहिए. क्योकि चन्द्र और लग्नेश बुध दोनों सम संबन्ध रखते है.

तुला लग्न-मोती रत्न

तुला लग्न के व्यक्तियों को मोती रत्न धारण करने से यश, मान-धर्म, पितृ्सुख और धर्म कार्यो में रुचि देता है.

वृश्चिक लग्न-मोती रत्न

इस लग्न के लिये चन्द्र नवम भाव के स्वामी है. नवम भाव भाग्य भाव है. इसलिये वृ्श्चिक लग्न के लिये मोती सभी रत्नों में सर्वश्रेष्ठ फलकारी रहते है.

धनु लग्न-मोती रत्न

इस लग्न के लिये ये अष्टम भाव के स्वामी है. धनु लग्न के व्यक्ति मोती रत्न कभी भी धारण न करें.

मकर लग्न-मोती रत्न

मकर लग्न के लिये चन्द्र सप्तम भाव है. सप्तम भाव भी मारक भाव है. इस स्थिति में मोती रत्न विशेष परिस्थितियों में ही धारण करना चाहिए. ऎसे में इस रत्न को चन्द्र महादशा में धारण करना चाहिए. जहां तक संभव हो, इस लग्न के लिये नीलम रत्न ही धारण करना चाहिए.

कुम्भ लग्न-मोती रत्न

कुम्भ लग्न के लिये चन्द्र छठे भाव के स्वामी है. कुम्भ लग्न के व्यक्ति मोती रत्न कभी भी धारण न करें.

मीन लग्न-मोती रत्न

मीन लग्न के लिये चन्द्र त्रिकोण भाव के स्वामी है. यह भाव शुभ है. इसलिये इस भाव का रत्न धारण करना शुभ रहेगा. इसे धारण करने से व्यक्ति को संतान, विद्धा, बुद्धि का लाभ देते है.


मोती रत्न के साथ क्या पहने

मोती रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में माणिक्य, मूंगा और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है.

मोती रत्न के साथ क्या न पहने

मोती रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मोती रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.

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मोती रत्न धारण करने के सामान्यत:

चंद्रमा क्षीण होने पर मोती पहनने की सलाह दी जाती है मगर हर लग्न के लिए यह सही नहीं है। ऐसे लग्न जिनमें चंद्रमा शुभ स्थानों (केंद्र या‍ त्रिकोण) का स्वामी होकर निर्बल हो, ऐसे में ही मोती पहनना लाभदायक होता है। अन्यथा मोती भयानक डिप्रेशन, निराशावाद और आत्महत्या तक का कारक बन सकता है।

  • मन को शान्त करने के लिये मोती रत्न धारण किया जाता है. जब जन्म कुण्डली में चन्द्र पर कोई अशुभ प्रभाव होंने पर व्यक्ति को मोती धारण करने से लाभ प्राप्त होता है. 
  • जन्म कुण्डली में चन्द्र जब सूर्य के साथ स्थित हों अथवा सूर्य जिस स्थान पर चन्द्र उससे पंचम भाव में हों तो व्यक्ति को इनमें से किसी भी ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा में मोती रत्न धारण करना चाहिए.
  • मिथुन लग्न की कुण्डली में च्नद्र दूसरे भाव के स्वामी बनते है, इस कुण्डली में चन्द्र जब छठे भाव में स्थित हों तो व्यक्ति को अपने पारिवारिक सुखों में वृ्द्धि करने के लिये मोती धारण करना चाहिए. जब कोई रत्न लग्न के अनुसार धारण न किया जा रहा हों तो उसके अशुभ फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है.
    इस स्थिति में व्यक्ति चन्द्र कि महादशा – अन्तर्दशा में मोती धारण कर इस अशुभता में कमी करने का प्रयास कर सकता है.
  • जन्म कुण्डली में चन्द्र की स्थिति चतुर्थ भाव या सप्तम भाव में होने पर व्यक्ति के मातृ्सुख व ग्रहस्थ सुख में कमी की संभावनाएं बनती है. कुण्डली के इन सुखों में वृ्द्धि करने के लिये मोती का धारण किया जा सकता है.
  • जब कुण्डली में चन्द्र वृ्श्चिक राशि में हों तो व्यक्ति को मानसिक चिन्ताओं में कमी करने के लिये मोती रत्न धारण करना चाहिए. इस योग में चन्द्र कुण्डली के किसी भी भाव में चन्द्र पर अशुभ प्रभाव बना रहता है.
  • चन्द्र किसी भी स्थान पर हों तथा उनपर राहू-केतू की दृ्ष्टि होंने पर व्यक्ति को चन्द्र संबन्धी तत्वों में कमी रहने की संभावना रहती है.
  • चन्द्र की महादशा के पूर्ण शुभ फल प्राप्त करने के लिये चन्द्र रत्न मोती अवश्य धारण करना चाहिए.
  • जब जन्म कुन्डली में चन्द्र व राहू दोनों एक साथ स्थित हों तो यह ग्रहण योग बनता है. यह योग व्यक्ति को मानसिक विकार दे सकता है. इन विकारों को दूर करने के लिये मोती रत्न का सहयोग लिया जा सकता है.
  • चन्द्र की स्थिति अपनी राशि से जब छठे या आंठवें भाव में हों तो चन्द्र के इस अशुभ योग का दुष्प्रभाव को दूर करने के लिये चन्द्र रत्न मोती धारण करना चाहिए.

मोती धारण विधि:

मोती सोने या चांदी की अंगूठी में जड़वाकर धारण करना चाहिए। इनमें भी चांदी में धारण करना अधिक श्रेष्ठ है। सोमवार के दिन प्रातःकाल मोती की अंगूठी को कच्चे दूध और गंगाजल से धोकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करना चाहिए 
मंत्र श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः

मोती अपना प्रभाव 4 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 2 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है

चन्द्र कर्क राशि के स्वामी है.

तथा चन्द्र के शुभ फल प्राप्त करने के लिये मोती रत्न धारण किया जाता है. चन्द्र रत्न मोती शीतलता युक्त रत्न माना जाता है

इस रत्न को संस्कृ्त में मुक्ता, इंदुरत्न आदि नाम से पुकारा जाता है. इस रत्न को उर्दू, मराठी व हिन्दी में मोती कहा जाता है.

मोती पीला, फिका सफेद, हल्की नीली आभा वाला, लाल गुलाबी, हरा, सफेद इत्यादि रंगों में मोती पाया जाता है. मोती गोल, चपटे व लम्बे आकार में बाजार में उपलब्ध है.

मोती धारण के लाभ

मोती चन्द्र का रत्न है. चन्द्र को मातृ्सुख, मन, घर से दूर प्रवास करना, आयात-निर्यात, दूध से बने पदार्थ, व्यापार, प्रेम आदि विषयों के लिये चन्द्र रत्न मोती धारण किया जा सकता है. इन में से किसी भी विषय वस्तु का सहयोग प्राप्त करना हों तो व्यक्ति के द्वारा मोती धारण करना लाभकारी रहता है.

मोती उन व्यक्तियों को भी धारण करना चाहिए. जिन्हें शीघ्र क्रोध आता है. क्रोध में कमी करने में यह रत्न विशेष सहयोगी होता है. मन को शान्त रखने के लिये भी यह रत्न धारण किया जा सकता है. मोती धारण करने से व्यक्ति की एकाग्रता में वृ्द्धि होती है.

ज्योतिष् शास्त्र में चंद्रमा को ब्रह्मांड का मन कहा गया है. हमारे शरीर में भी चंद्रमा हमारे मन व मस्तिष्क का कारक है, विचारों की स्थिरता का प्रतीक है. मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा दोस्त या दुश्मन है. यह कहावत तो आपने सुनी होगी ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’.

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यदि चंद्रमा कमज़ोर स्थिति में हो मनुष्य में बैचेनी, दिमागी अस्थिरता, आत्मविश्वास की कमी होती है और इसी कमी के चलते वह बार-बार अपना लक्ष्य बदलता रहता है. जिस के कारण सदैव असफलता ही हाथ लगती है. चंद्रमा आलस्य, कफ, दिमागी असंतुलन, मिर्गी, पानी की कमी, आदि रोग उत्पन्न करता है . यह पानी का प्रतिनिधि ग्रह है. मोती की उत्पत्ति भी पानी में और पानी के द्वारा ही होती है.

चंद्रमा यदि आपकी कुंडली के अनुसार शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति शारीरिक रूप से पुष्ट, सुंदर, विनोद प्रिय , सहनशील, भावनाओं की कद्र करने वाला, सच्चा होता है.

मोती चंद्रमा का रत्न है. कहा जाता है

कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाती एक, गुण तीन|
जैसी संगत बैठियें, तेसोई फल दीन ||

अर्थात स्वाती नक्षत्र के समय बरसात की एक बूंद घोघे के मुख में समाती है तब वह मोती बन जाता है. वही बूंद केले में जा कर कपूर और साँप के मूह में जा कर हाला हाल विष बनती है.

रसायनिक दृष्टि से इसमे , केल्षीयम, कार्बन और आक्सीज़न,यह तीन तत्व पाए जाते है. आयुर्वेद के अनुसार मोती में 90% चूना होता है, इसलिए कैल्शियम् की कमी के कारण जो रोग उत्पन्न होते है उनमें लाभ करता है. नेत्र रोग, स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए, पाचन शक्ति को तेज़ करने के लिए व हृदय को बल देने के लिए मोती धारण करना चाहिए.

मोती का आकार

जब असली मोतियों को समुद्र से प्राप्त किया जाता है. तब उस स्थिति में ये गोल आकार के न होकर लम्बें, चपटे या टेढे-मेढे होते है. जिन्हें बाद में प्रयोगशाला में सही आकार दिया जाता है. आजकल कई देशों में कृ्त्रिम मोती भी बनाये जाते है.

मोती में स्वास्थय संबन्धी गुण

मोती की भस्म का सेवन व्यक्ति के बल में वृ्द्धि करता है. इस भस्म से मन को शीतलता प्राप्त होती है. मोती की भस्म को नेत्र रोगों, तपेदिक, खांसी, रक्तचाप, ह्रदय रोग, वायुविकार आदि रोगों में इसे प्रयोग किया जा सकता है.

चिकित्सा क्षेत्र में मोती को जिन रोगों के निवारण के लिये प्रयोग किया जा सकता है. उसमें पत्थरी रोग होने पर व्यक्ति को शहद के साथ इसकी भस्म का सेवन करना चाहिए.

आज के समय में मोती की भस्म का प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधनों में किया जाता है. मोती की भस्म का सेवन करने से क्रोध में कमी होती है. चिकित्सा जगत में मोती की भस्म के प्रयोग से दांतों का पीलापन, धब्बे दूर करने में सहयोग प्राप्त होता है. मोती की भस्म को चेहरे की चमक बढाने के लिये प्रयोग किया जाता है.

मोती की विशेष शक्तियां

मोती के विषय में यह कहा जाता है. की मोती को धारण करने से सभी मानसिक विकारों में कमी होती है. प्रेम प्रसंगों में मोती को धारण करने से इस विषय में सफलता प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. मोती धारण करने से व्यक्ति के स्वभाव के मृ्दुता के भाव में वृ्द्धि होती है.

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