मूँगा रत्न

Coral Moonga Gemstone
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लाल रंग के मूंगा रत्न (Red Coral) को मंगल ग्रह का रत्न माना जाता है। ज्योतिषी मानते हैं कि इसे धारण करने से मंगल ग्रह की पीड़ा शांत होती है। इस रत्न को भौम रत्न, पोला, मिरजान, लता मणि, कोरल, प्रवाल के नाम से भी जाना जाता है। मूंगा रत्न ज्यादातर लाल रंग का होता है परंतु यह गहरे लाल, सिंदूरी लाल, नारंगी आदि रंग के भी पाए जाते हैं।

मूंगा के तथ्य

मूंगा के बारे में यह माना जाता है कि मूंगा एक वनस्पति है जिसका एक पेड़ है लेकिन यह रत्न समुद्र में पाया जाता है।

मूंगा जितना समुद्र की गहराई में होता है इसका रंग उतना ही हल्का भी होता है।

मूंगा के लिए राशि

मेष तथा वृश्चिक राशि के जातकों के लिए मूंगा रत्न, सबसे बेहतरीन माना जाता है।

मूंगा के फायदे

मूंगा धारण करने से नज़र नहीं लगती है और भूत-प्रेत का डर नहीं रहता है।

आत्मविश्वास तथा सकारात्मक सोच में वृद्धि होती है।

आकर्षण शक्ति बढ़ती है तथा लोगों का देखने का नजरिया बदलता है।

मूंगा को पहनने से क्रूर तथा जलन का नाश हो जाता है।

स्वास्थ्य में मूंगा का लाभ

मूंगा रत्न को धारण करने से रक्त संबंधित सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

जो जातक हृदय रोगों से ग्रस्त हैं उन्हें मूंगा धारण करना चाहिए।

मिर्गी तथा पीलिया रोगियों के लिए यह रत्न उत्तम साबित माना गया है।

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कैसे पहने मूंगा ?

मूंगा या किसी भी अन्य रत्न को धारण करने से पहले अच्छे ज्योतिषी से अवश्य सलाह ले लेनी चाहिए। मूंगा मंगलवार के दिन अनामिका में धारण करना चाहिए। पुरुषों को दाएं हाथ में और स्त्रियों को बाएं हाथ की अनामिका उंगली में मूंगा धारण करने का विधान है।

मूंगा का उपरत्न

मूंगा के स्थान पर लाल हकीक, तामड़ा या संग-सितारा (Sang-Sitara) धारण किया जा सकता है।

मुंगा रत्न मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है!

बेहतरीन मुंगा जापान और इटली के समुन्द्रो में पाया जाता है! यदि जन्म कुंडली में मंगल अच्छे प्रभाव दे रहा हो तो मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए ! कुंडली में मंगल कमज़ोर होने की स्थिति में मुंगा धारण करने से उसे बल दिया जा सकता है! मुंगा धारण करने से हमारे पराक्रम में वृद्धि होती है आलस्य में कमी आती है! मुंगा कुंडली में स्थित मांगलिक योग की अशुभता में भी कमी लता है तथा इस योग के द्वारा होने वाली हानियों को ख़त्म करता है, स्त्रियों में रक्त की कमी और मासिक धर्म, और रक्तचाप जैसी परेशानियो को नियंत्रित करने में भी मुंगा अत्यंत लाभकारी होता है!

अदि आप में साहस की कमी और शत्रुओं से सामना करने की हिम्मत नहीं है तो इसमें मुंगा आपकी सहायता कर सकता है क्योकि इसके पहने से हमारे मनको बल प्राप्त होता है और फल स्वरूप हमारे भीतर निडरता आ जाती है और शत्रुओं का सामना करने की हिम्मत आ जाती है ! जिन बच्चों में आत्मविश्वास की कमी और दब्बूपन मोजूद होता है उन्हें मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए ताकि वे दुनिया के सामने खुल कर आ सके ! पुलिस, या फोज के अधिकारिओं को मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए! आभूषण और रेस्तरां के व्यवसाय से जुड़े लोगो के लिए मुंगा अतिआवश्यक है यह इन व्यवसायों में सफलता प्रदान करता है ! मंगल के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जापानी या इटालियन मुंगा ही धारण करना चाहिए ! इसका रंग सिंदूरी लाल और बिना दाग का होना चाहिए ! लेकिन सभी जातक को मुंगा धारण करने से पहले किसी अच्छे और अनुभवी ज्योतिष आचार्य की सलाह अवश्य लेनी चाहिए!

मुंगा धारण करने की विधि

यदि आप मंगल देव के रत्न, मुंगे को धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मुंगे को स्वर्ण या ताम्बे की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के किसी भी मंगलवार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध, गंगा जल, शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती मंगल देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे कि हे मंगल देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न मुंगा धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे !
अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ अं अंगारकाय नम: ११ बारी का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी हनुमान जी के चरणों से स्पर्श कराकर अनामिका में धारण करे! मंगल के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जापानी या इटालियन मुंगा ही धारण करे, मुंगा धारण करने के 27 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 3 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है !
निष्क्रिय होने के बाद पुन: नया मुंगा धारण करे ! मुंगे का रंग लाल और दाग रहित होना चाहिए , मुंगे में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है !

अंग्रेजी भाषा में इसे कोरल कहते हैं। यह मंगल का रत्‍न है। यह समुद्र में वनस्‍पति के रूप में पाया जाता है। लता के समान होने के कारण प्राचीन काल में इसे लतामणि भी कहते थे। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि कई सौ साल पहले ही फ्रांसीसियों ने मूंगा निकालने का काम शुरू कर दिया था। इसके बाद 18वीं शताब्‍दी में इटली में भी यह व्‍यापार के रूप में निकाला व बेचा जाने लगा।

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मूंगा रत्न की प्राकृतिक उपलब्‍धता

मोती की तरह यह भी समुद्र में ही पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से यह जितनी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है उतनी ही तेजी से राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है।

वास्‍तव में समुद्र में मूंगा का निर्माण एक विशेष प्रकार के जन्‍तुओं द्वारा किया जाता है। ये जन्‍तु अपने रहने के लिए स्‍वयं लाल रंग का लसलसा पदार्थ निकालते हैं और मूंगे की बड़ी-बड़ी कालोनी बनाते हैं। इसे अंग्रेजी में ‘कोरल रीफ’ कहते हैं।

यहां से लंबी-लंबी शाखाओं के रूप में इसे प्राप्‍त करते हैं और फिर इसे छोटे-छोटे आकार में काट कर रत्‍नों के रूप में पहना जाता है। लाल, सिंदूरी और गेरूएं रंग में यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।

विज्ञान और मूंगा रत्न

मूंगा अन्‍य रत्‍नों की तरह रसायनिक पदार्थों से मिलकर नहीं बना है यह तो एक वनस्‍पति है। इसलिए इसका अध्‍ययन वनस्‍पति विज्ञान में किया जाता है। यह पानी से बाहर आने के बाद हवा के संपर्क में कठोर हो जाता है। इसका घनत्‍व लगभग 2.65 तथा कठोरता 3.5 से 4 तक होती है।

कृत्रिम मूंगा

यह बहुत सुंदर रत्‍न होता है इसलिए इसका इस्‍तेमाल आजकल बहुत तेजी से चलन में आ रही फैशन ज्‍वेलरी में भी किया जाता है। सेमीप्रीशियस स्‍टोन होने के कारण ज्‍वेलरी में इसके विकल्‍प के तौर पर लाल रंग के दूसरे पत्‍थरों का इस्‍तेमाल किया जाता है। ज्‍यादा मुनाफे के लिए कुछ लोग ऐसे मूंगे जैसे दिखने वाले पत्‍थर को ही मूंगा कहकर बेच देते हैं।

मूंगा रत्न के गुण

यह चमकदार रत्‍न होता है और बहुत चिकना होता है। धनत्‍व अधिक होने के कारण इसका औसत वजन भी अधिक होता है। मंगल का रत्‍न प्रकाश पड़ने पर सिंदूरी रंग की आभा प्रकट करता है।

ज्‍योतिष और मूंगा रत्न के लाभ

जन्‍मकुंडली में मंगल क्रूर होने, नीच का होने या फिर फलदायी होने पर उसके बुरे फल से बचने के लिए मूंगा धारण करते हैं। ज्‍योतिष में ऐसा माना जाता है यदि मूंगा शुद्ध हो और अच्‍छी जगह का हो तो इसको धारण करने वाले का मन प्रसन्‍न रहता है। बच्‍चे को मूंगा पहनाने पर उसे पेट दर्द और सूखा (कुपोषण) रोग नहीं होता है।
जन्‍म के समय यदि सूर्य मेष राशि में हो या फिर जन्‍म 15 नवंबर से 14 दिसंबर के बीच हो तो ऐसे लोगों को मूंगा अवश्‍य धारण करना चाहिए। कुंडली में निम्‍न परिस्‍थितियां होने पर मूंगा धारण करने की सलाह दी जाती है।

मंगल कुंडली में राहू या शनी के साथ कहीं भी स्थित हो तो मूंगा पहनना बहुत लाभ पहुंचाता है। मंगल अगर प्रथम भाव में हो तो भी मूंगा धारण करना बहुत लाभदायक होता है।मंगल यदि कुंडली में तीसरे भाव में हो तो भाई बहनों के साथ क्‍लेश कराता है। ऐसे में मूंगा धारण करना लाभदायक होता है और भाई बहनों के बीच प्रेम बना रहता है।
चौथे भाव में मंगल जीवन साथी के स्‍वास्‍थ्‍य को खराब करता है। इस परिस्‍थि‍ति में मूंगा धारण करने से जीवन साथी स्‍वस्‍थ्‍य रहता है।
सप्‍तम और द्वादश भाव में बैठा मंगल अशुभ कारक होता है। यह जीवन साथी को कष्‍ट देता है और उनसे संघर्ष कराता है। इस स्थिति में मूंगा पहनना बहुत लाभ देता है।
अगर कुंडली में धनेश मंगल नौवे भाव में, चतुर्थेश मंगल एकादश भाव में या पंचम भाव का स्‍वामी मंगल बारहवें भाव में हो तो मूंगा पहनना अत्‍यंत लाभकारी होता है।
अगर कुंडली में नौवे भाव का स्‍वामी मंगल चौथे स्‍थान में हो या दशवें भाव का स्‍वामी मंगल पांचवें तथा ग्‍यारवें भाव में हो तो ऐसे में मूंगा पहनना अच्‍छा होता है।कुंडली में कहीं भी बैठा मंगल यदि सातवें, दसवें और ग्‍यारवें भाव को देख रहा होता है तो मूंगा धारण करना लाभदायक होता है।
अगर मेष या वृश्‍चिक लग्‍न में मंगल छठे भाव में, पंचमेश मंगल दसवें भाव में, धनेश मंगल सप्‍तम भाव में, चतुर्थेश मंगल नौवे भाव में, नवमेश मंगल धन स्‍थान में, सप्‍तमेश मंगल द्वादश भाव में, दशमेश मंगल बाहरवें भाव में या फिर ग्‍यारवां मंगल चौथे भाव में हो तो मूंगा धारण करना अत्‍यंत लाभकरी होता है।
छठे, आठवें और बारहवें भाव में मंगल स्थित हो तभी तो मूंगा धारण करना लाभकारी होता है। मंगल की दृष्‍टि सूर्य पर पड़ रही हो तो भी मूंगा पहनना लाभदायक होता है।कुंडली में मंगल चंद्रमा के साथ हो तो यदि मूंगा धारण किया जाए तो आर्थिक स्थिति अच्‍छी होती है।
कुंडली में मंगल छठें भाव और आठवें भाव के स्‍वामी के साथ बैठा हो तो या इन ग्रहों की दृ‍ष्‍टि मंगल पर पड़ रही हो तो मूंगा धारण करने पर लाभ होता है। कुंडली में मंगल वक्री, अस्‍त या पहले भाव में हो तो मूंगा पहनकर इनके नकारात्‍मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
जन्‍मकुंडली में मंगल शुभ भावों का स्‍वामी हो लेकिन खुद शत्रु ग्रहों या अशुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो इसके अच्‍छे प्रभावों को शक्‍ति देने के लिए मूंगा धारण करना चाहिए।

मूंगे का प्रयोग

मूंगे को सोने की अंगूठी में जड़वा कर धारण किया जाता है। यदि आर्थिक कारणों से सोने की अंगूठी खरीदना संभव न हो तो चांदी में थोड़ा सोना मिलाकर या तांबे की अंगूठी में इसे जड़वाकर धारण किया जा सकता है। मूंगे का कम से कम वजन 6 रत्‍ती होना चाहिए।

इसे मंगलवार के दिन खरीदकर उसी दिन इसकी अंगूठी बनवाकर पहनना चाहिए। अंगूठी में मूंगे को जागृत करने के लिए दस हजार बार ऊं अं अंगारकाय नम: का जाप करके इसे पहनना चाहिए। ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार किसी शुक्‍ल पक्ष के मंगलवार को सूर्योदय के एक घंटे बाद दाएं हाथ की अनामिका उंगली में पहनना चाहिए।

मूंगे का विकल्‍प

यदि अच्‍छा मूंगा ना मिल रहा हो और यदि इसे खरीदा जाना किसी के लिए संभव न हो तो वह संग मूंगी, लाल तामड़ा, लाल जेस्‍पर, कहरूवा (अम्‍बर) अथवा विद्रुम मणि धारण कर सकते हैं। ये रत्‍न दाम में मूंगे से काफी कम होते हैं किन्‍तु इनको पहनने से लाभ मूंगे जैसा ही होता है।

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