वृश्चिक राशि एवं लग्न

Vrushab and Ratna Jankari
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वृश्चिक राशि एवं लग्न परिचय में जन्म लेने वाला जातक शूरवीर, बुद्धिमान, धनवान, विवेकशील, कुल मव श्रेष्ठ एवं परिवार का पालन करने वाला होता है। ऐसे जातक उच्च प्रतिष्ठित लोगों से सम्मानित होते हुए भी अपने तथा अन्य लोगों के कामों में विघ्न उठाने वाले। प्रत्यक्षत: शुभ लक्षणों से युक्त और पराक्रमी होने पर भी गुप्त रूप में पाप आचरण करने वाले होते हैं।

वृश्चिक राशि चक्र की आठवीं राशि है

भचक्र में इसका विस्तार 210 अंश से 240 अंश तक है। इसके बीच पड़ने वाले नक्षत्र तारों का आकार बिच्छू जैसा दिखाई देता है। इस राशि का स्वामी मंगल ग्रह है। कालपुरुष में इस राशि का संबंध मूतेन्द्रीय, गुदा, गुप्तांग, जननेंद्रिय एवं पेट के नीचे का भाग है। इस राशि के अंतर्गत विशाखा नक्षत्र का प्रथम चरण (तो) अनुराधा के चारों चरण (ना नी नू ने) तथा जेष्ठा के चार चरण (नो या यी यू) पढ़ते हैं।
किसी जातक के जन्मकालीन चंद्रमा जिस नक्षत्र चरण पर होता है भारतीय ज्योतिषी परंपरा तदनुसार ही उसका नामकरण किया जाता है। क्योंकि लग्न के अतिरिक्त नाम राशि नक्षत्र एवं उसके स्वामी ग्रह का भी जातक के व्यक्तित्व एवं जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। जैसे विशाखा नक्षत्र का स्वामी गुरु अनुराधा का शनि तथा जेष्ठा नक्षत्र का स्वामी बुध होता है। तो किसी जातक का जन्म जिस में होगा उस जातक के जन्म लग्न एवं लग्नेश के अतिरिक्त नक्षत्र स्वामी ग्रह का प्रभाव भी लक्षित होगा। आगामी लेख में जातक के जन्म लग्न में स्थित ग्रहों के अनुसार फलादेश का विवेचन किया जाएगा। तथापि जातक के लग्न स्पष्ट के आधार पर निर्मित द्रेष्काण, त्रिशांश, नवांश आदि कुंडलियों का भी अध्ययन करने के बाद ही जातक के भविष्य के संबंध में अंतिम निर्णय करना चाहिए।
जैसे किसी जातक के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त करनी हो तो जन्म कुंडली में लग्न राशि लग्नेश एवं केंद्र आदि में बलवान ग्रह के अनुसार शरीर संरचना होती है। इसके अतिरिक्त नवांश कुंडली के स्वामी के सदृश शरीर रचना होती है। चंद्र जिस नवांश में हो उस नवांश पति के सदृश शरीर का गौर वर्ण होता है। भट्टोत्पल अनुसार चंद्र जिस राशि में हो उस राशि के समान वर्ण रंग होता है।

चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीचस्थ माना जाता है विशेषकर इस राशि के 3 अंश पर परम नीच तथा वरिष्ठ के 3 अंश पर परमोच्च माना जाता है। यद्यपि केतु धनु एवं इस राशि में उच्च माना जाता है। ग्रह मैत्री चक्र अनुसार सूर्य चंद्र व गुरु के लिए यह मित्र राशि है। शुक्र और शनि के लिए यह सम राशि तथा बुध व राहु के लिए शत्रु राशि मानी जाती है।

वृश्चिक राशि के अन्य पर्यायवाची नाम द्विरेफ, मधुकर, अस्त्र, सरीसृप, कीट, अली, सविष आदि।

वृश्चिक राशि जल तत्व प्रधान, दीर्घ एवं शीर्षोदय संज्ञक, स्थिर स्वभाव , दिवाबली, सम एवं स्त्री राशि, मूल संज्ञक, ब्राह्मण जाति किंतु तमोगुणी प्रकृति, वश्य कीट संज्ञक, बिच्छू के समान आकृति वाली, समय परंतु कफ प्रकृति वाली राशि है। जलिय राशि होने से वृश्चिक राशि वाले जातकों का वृष, कर्क, कन्या, मकर एवं मीन राशि के जातकों के साथ मैत्री संबंध अच्छे निभ जाते हैं।

स्वाभाविक गुण निर्भीक, पराक्रमी, परिश्रमी, साहसी, मिव्ययी एवं दृढ़ निश्चय किंतु स्वेच्छाचारी प्रकृति के होते हैं। ऐसे जातक स्पष्टवादी, स्वाभिमानी, व्यवहार कुशल, दृढ़ संकल्प शक्ति वाले और अपने पुरुषार्थ द्वारा जीवन में उन्नति करने वाले होते हैं।

वृश्चिक लग्न में शुभ अशुभ एवं योगकारक ग्रह वृश्चिक लग्न कुंडली में सूर्य और चंद्र दोनों ग्रह राजयोग कारक होते हैं। इसके अतिरिक्त गुरु भी द्वितीयेश व पंचमेश होने से विशेष शुभ एवं योग कारक होता है। मंगल लग्नेश व षष्ठेश होने से मिश्रित प्रभाव करता है जबकि शनि व बुध दोनों इस कुंडली में प्राय: अशुभ फल प्रदायक माने जाते हैं परंतु हमारे अनुभवों के अनुसार यह दोनों ग्रह स्थान व स्थिति के अनुसार शुभाशुभ फल करेंगे राहु व केतु भी स्थान व अन्य ग्रहों के योग व दृष्टि अनुसार शुभाशुभ फल प्रदान करता है।

जिस व्यक्ति के पास अपने जन्म की तारीख वार समय आदि का विवरण नहीं हो वह अपने नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी नाम राशि का निर्धारण कर सकते हैं।

 ता, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू

वृश्चिक लग्न गुण एवं विशेषताएं

वृश्चिक लग्न शारीरिक गठन राशि का स्वामी मंगल है। कुंडली में यदि मंगल शुभ अवस्था या अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक देखने में सुंदर आकृति, गेहुआ रंग, पृष्ठ एवं सुगठित शरीर तथा आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होगा। आंखें चमकीली बड़ी एवं कुछ लालिमा लिए हुए तथा कद सामान्य एवं लंबा और जांघे व पिंडलियां गोल होती है। वृश्चिक जातक का चेहरा कुछ बड़ा एवं तेजस्वी हाथ प्रायः सामान्य से अधिक लंबे होंगे। जातक चलने में तेज गति एवं सतर्क होगा।

चारित्रिक विशेषताएं एवं स्वभाव वृश्चिक लग्न में उत्पन्न जातक पराक्रमी, कुशाग्र बुद्धि, साहसी, परिश्रमी, स्पष्ट वक्ता, उदार हृदय, उद्यमी एवं पुरुषार्थी होता है। ऐसा जातक सत्यप्रिय, ईमानदार, परंतु अपने उद्देश्य के प्रति सतर्क, संवेदनशील व आक्रमक प्रवृत्ति तथा अपने उद्यम एवं सामर्थ्य के बल पर ही जीवन में लाभ व उन्नति प्राप्त करने वाला होता है। जातक कर्तव्यनिष्ठ माता पिता भाई बंधुओं एवं अपने परिवार में विशेष प्रेम करने वाला होता है। वृश्चिक लग्न व राशि का स्वामी मंगल अग्नि राशि एवं स्त्री संज्ञक होने से जातक स्वाभिमानी, उच्च अभिलाषी, धैर्यवान, स्वेच्छाचारी, उच्च प्रतिष्ठित एवं निश्चयी प्रकृति का होता है। यदि कुंडली में मंगल गुरु एवं सूर्य शुभस्थ हो तो जातक की संकल्प शक्ति एवं आत्मिक शक्ति विशेष प्रबल होती है। जातक श्रेष्ठ एवं चतुर बुद्धि, न्यायप्रिय, आत्मविश्वासी, मन में जिस किसी कार्य विशेष का संकल्प कर ले उसे पूरा किए बिना चैन से नहीं बैठता। ऐसा जातक धर्म परायण, परोपकारी, दयालु, स्वतंत्र चिंतन, करने वाला परंतु कई बार अपने क्रोध या स्वाभिमान के कारण एवं हट पर अडिग रहने से हानि उठाने वाला होता है। विलक्षण प्रतिभा के कारण सरलता से किसी अन्य व्यक्ति के प्रभाव व वश में नहीं आता। अपनी रुचियों एवं अरुचियों के संबंध में भी शीघ्रता से समझौता नहीं करता। यद्यपि वृश्चिक जातक जल तत्व की राशि होने से कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी स्वयं को ढाल लेने में सक्षम होते हैं। सूक्ष्म बुद्धि होने से वृश्चिक जातक रहस्यात्मक एवं गूढ़ विद्याओं जैसे धर्म, अध्यात्म, ज्योतिष, साहित्य, पौराणिक एवं काम शास्त्र में भी विशेष रुचि रखते हैं। जातक विलास प्रिय कामुक प्रवृत्ति एवं विपरीत योनि के प्रति भी विशेष आकर्षण रखते हैं।

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वृश्चिक जातक प्रायः सभी कार्य बड़े आत्मविश्वास के साथ करते हैं। उनका उत्साह एवं परिश्रम लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बनते हैं। यह सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने के लिए सदा तैयार बने रहते हैं तथा उन पर विजय भी प्राप्त कर लेते हैं। कुंडली में मंगल सूर्य आदि ग्रहों के प्रभावस्वरूप वृश्चिक जातक में आत्मविश्वास, आवेश से काम करने की प्रवृत्ति, साहस, संकल्प, उत्तेजना, स्वच्छंद प्रकृति जैसे गुण प्रदान करते हैं। ऐसे जातक जिसे पसंद करते हैं पुरे हृदय से करते हैं तथा जीसे घृणा करते हैं वो भी मन से ही करते हैं वह अतिवादी होते हैं। बहुत शीघ्र आवेश में आ जाते हैं। जीवन के संग्राम में अपनी लड़ाई स्वयं लड़ना पसंद करते हैं। दूसरों का अनावश्यक हस्तक्षेप कदापि पसंद नहीं करते।

वृश्चिक जातकों में बिच्छू की भांति डंक मारने की प्रवृति होती है। ब्राह्मण राशि होने के कारण किसी को अनावश्यक रुप से तंग नहीं करते हैं। परंतु यदि कोई चोट या आघात पहुंचा है या विश्वासघात करें तो उसे आसानी से नहीं भूलते तथा पूरा प्रतिशोध लेने का प्रयास करते हैं। परंतु शत्रु द्वारा हृदय से खेद प्रकट कर देने से क्षमाशील भी हो जाते हैं। वृश्चिक जातक विघ्न-बाधाओं में भी विचलित नहीं होते बल्कि विघ्न-बाधाएं आ जाने पर अंतिम समय तक संघर्ष करते रहते हैं।

यदि कुंडली में चंद्र-गुरु या चंद्र-मंगल-गुरु का शुभ योग हो तो जातक की बौद्धिक एवं अंतः संवेदनशक्ति तथा अन्वेषण शक्ति अच्छी होती है। उनमें धर्म, यंत्र, ज्योतिष, मंत्र आदि शास्त्रों के प्रति विशेष रुचि होती है। तर्क वितर्क करने एवं किसी भी समस्या की जड़ तक पहुंचने की क्षमता होती है। यह प्रत्येक कार्य को पूरी निष्ठा जिम्मेदारी और कर्तव्य की भावना से करते हैं। सूर्य गुरु का दृष्टि आदि संबंध हो तो जातक विद्वान अनेक भाषाओं का ज्ञाता तथा प्राध्यापक आदि के क्षेत्र में सफल होता है।

यदि कुंडली में मंगल गुरु शनि आदि ग्रह उच्च स्थान में हो और लग्न पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो जातक स्व उपार्जित धन एवं भूमि आवास वाहन आदि सुख साधनों से संपन्न तथा सुंदर सुशील स्त्री संतान आदि सुखों से युक्त होगा। वृश्चिक जातक को भय या रौब दिखाकर कोई काम करवा लेना अत्यंत कठिन होता है। परंतु प्यार के वशीभूत होकर उनसे कठिन काम भी करवाया जा सकता है। अपने दोस्त के प्रति पूरे इमानदार एवं निष्ठावान रहते हैं। दोस्ती में अपना निजी स्वार्थ भी न्योछावर करने को तैयार हो जाते हैं। वृश्चिक जातक या तो अती प्यार करते हैं या अति घृणा करते हैं। मध्यमार्गी कम देखे जाते हैं। वृश्चिक जातक अपने कार्य क्षेत्र में वैसे जीवनपर्यंत कर्मठ एवं सक्रिय बने रहते हैं। परंतु जीवन की प्रारंभिक अवस्था में कठिन परिश्रम एवं संघर्ष अधिक रहता है।

यदि वृश्चिक लग्न में शनि राहु आदि अशुभ ग्रहों का योग या दृष्टि हो तो जातक असंयमी, झगड़ालू, कुविचारी, क्रोधी, गुप्त रूप से दुष्कर्म करने वाला एवं कामुक एवं व्यसनी स्वभाव का होता है। ऐसे जातक को गंभीर एवं क्लिष्ट रोगों का भी भय रहता है।

वृश्चिक लग्न जातको का शिक्षा-व्यवसाय एवं आर्थिक स्थिति स्वास्थ्य रोग,

रोग और स्वास्थ्य और वृश्चिक लग्न के जातक बाल्यावस्था को छोड़ सामान्यतः बहुत कम बीमार या रोग ग्रस्त होते हैं। यदि किसी कारणवश बीमार हो जाए तो शीघ्र स्वस्थ भी हो जाते हैं। इनकी अस्वस्थता के प्रमुख कारणों में असंयमित खानपान एवं अत्यधिक आवेश एवं विषय वासना व श्रम की अधिकता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यदि वृश्चिक राशि अथवा लग्नेश मंगल राहु, शनि, शुक्र आदि शत्रु एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को मूत्राशय एवं जननेंद्रिय संबंधी योन रोग, पाचन क्रिया में विकार, अंडकोष में सूजन, मधुमेह, गुर्दे या पित्ताशय में पथरी, रक्त विकार इसके अतिरिक्त वृश्चिक लग्न में छठी मेष राशि होने से वृश्चिक जातक को अनिद्रा, उत्तेजना, तनाव, मानसिक दबाव, उच्च रक्तचाप एवं मस्तिष्क संबंधी रोगों की संभावना होती है।

सावधानी वृश्चिक जातक को अत्यधिक मानसिक एवं शारीरिक श्रम, उद्विग्नता उत्तेजना, अनियमितता एवं तामसिक भोजन आदि से परहेज करना चाहिए।

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कैरियर एवं शिक्षा  जन्म कुंडली में गुरु मंगल, सूर्य, चंद्र आदि ग्रह स्पष्ट हो अथवा सूर्य, गुरु का या चंद्र, गुरु, मंगल का दृष्टि संबंध हो या जातक को इन्हीं योग कारक ग्रह में से किसी ग्रह की दशा अंतर्दशा भी चल रही हो तो वृश्चिक लग्न का जातक जातिका उच्च विद्या के क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर लेता है। यदि ग्रहों की स्थिति एवं परिस्थितिवश जातक को उच्च विद्या ना भी प्राप्त हो सके तो भी वृश्चिक जातक को गुरु के कारण धार्मिक, पौराणिक, ज्योतिष आदि गुप्त विद्याओं तथा अन्य तकनीकी विद्याओं को जानने व सीखने की विशेष रुचि रहती है। पारंपरिक उच्च विद्या में किसी कारणवश विघ्न हो तो भी सामान्य ज्ञान अच्छा होता है। और भाषा पर अच्छा अधिकार होता है। तथा अपने करियर के प्रति विशेष सतर्क होते हैं। यदि किसी कुंडली में लग्न एवं कर्मेश सूर्य पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो जातक भाषा शास्त्री अनेक भाषाओं का ज्ञान एवं उच्च प्रतिष्ठित प्राध्यापक होता है। यदि कुंडली में सूर्य, बुध, गुरु का योग हो तथा शनि भी शुभस्थ हो तो जातक चार्टर्ड अकाउंटेंट होता है तथा सरकारी क्षेत्रों में भी अच्छा लाभ उठाता है। यदि वृश्चिक कुंडली में लग्नेश मंगल उच्चस्थ होकर तृतीय भाव में भाग्यस्थ गुरु द्वारा दृष्ट हो शनि भी  स्वक्षेत्रीय उच्चस्थ हो तो जातक प्रिंटिंग उद्योग, क्रय विक्रय अथवा निजी व्यवसाय द्वारा अच्छा धनार्जन करता है।

उच्च के सूर्य पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो जातक/जातिका मेडिकल क्षेत्र में सफल होता है। यदि कुंडली में भाग्येश चंद्रमा लग्नेश मंगल का स्थान परिवर्तन योग हो तथा तृतीयेश शनि द्वादश भाव मे  हो तो जातक का भाग्योदय विदेश में होता है। यदि लग्नेश मंगल दशम भाव में सूर्य से योग करता हो तो जातक खेल, सेना, पुलिस, योग आदि में सफल होता है।

व्यवसाय और आर्थिक स्थिति वृश्चिक लग्न के जातक अत्यंत पराक्रमी, परिश्रमी बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी तथा अपने लक्ष्य के प्रति सतर्क रहने के कारण व्यवसाय के किसी भी क्षेत्र में जहां परिश्रम उत्साह एवं जोखिम के कार्य हो वहां लाभ व उन्नति प्राप्त कर लेते हैं।

जन्म कुंडली में मंगल-सूर्य-गुरु-चंद्र-शनि आदि ग्रह शुभस्थ हो अथवा उनमें परस्पर शुभ संबंध हो एवं इन्हीं ग्रहों में से किसी ग्रह की दशा अंतर्दशा चल रही हो तथा गोचर में भी इन्हीं में से किसी शुभ ग्रहों का संचार चलता हो तो वृश्चिक जातक निम्नलिखित विषयों में से किसी एक में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जैसे:- चिकित्सा क्षेत्र में मेडिकल स्टोर, डॉक्टर, सर्जन, इंजीनियर, राजनीतिज्ञ, सेना-पुलिस अधिकारी, स्पोर्ट्स, प्रोफेसर (प्राध्यापक), ज्योतिषी, अनुसंधानकर्ता, प्रिंटिंग, उद्योग, राजनेता, कूटनीतिज्ञ, बॉक्सिंग, जासूस, नेवी, लोहे, चमड़े या रबड़ उद्योग से संबंधित व्यवसाय, वकालत, होटल एवं रेस्टोरेंट एवं खानपान संबंधित, स्कूल आदि शिक्षा संस्थान, उच्च प्रतिष्ठित सरकारी अफसर, धार्मिक संस्था के अग्रणी, ऊनी वस्त्र, ठेकेदार, प्रबंध एवं सुरक्षात्मक प्रबंधन से संबंधित व्यवसाय, ईट, पत्थर, रबड़, पेंट व रंग, पाइप फिटिंग, बिल्डिंग निर्माण संबंधी सामग्री, क्रय विक्रय, विदेश गमन, बिजली, वाणिज्य, योग, कंप्यूटर विशेषज्ञ एवं बौद्धिक कार्य संबंधित व्यवसाय में विशेष सफल हो सकते हैं।

वृश्चिक लग्न/राशि से काल पुरुष के गुप्त अंगो की विवेचना की जाती है। यहीं पर मूलाधार चक्र भी है। इसी चक्र में अवस्थित कुंडलिनी शक्ति का जागरण कर योग विद्या से मस्तिष्क में स्थिति ब्रह्म चक्र से संयोजित किया जाता है। जिसे आध्यात्म की भाषा में आत्मसाक्षात्कार कहा जाता है। मूलाधार चक्र में अमृत तत्व का निवास भी माना जाता है। इसी कारण वृश्चिक लग्न राशि के जातकों में कामुक एवं रचनात्मक प्रवृतियों के साथ-साथ आध्यात्मिक एवं दैवीय प्रवृतियों की प्रबलता भी पाई जाती है।

वृश्चिक जातक की जन्म कुंडली में यदि गुरु-चंद्र-सूर्य-शनि आदि ग्रहों की स्थिति अच्छी हो तथा इनही शुभ एवं योगकारक ग्रहों में से किसी ग्रह की दशा अंतर्दशा चल रही हो तो जातक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। वृश्चिक जातक अपनी अदम्य, ऊर्जा, परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति से निर्वाह योग्य आय के साधन बना ही लेता है। यदि शुक्र भी शुभस्थ हो तो व्यवसाय एवं धनार्जन व संचय में पत्नी का भी सक्रिय सहयोग होता है। जातक भूमि, आवास, व्यवसाय, वाहन एवं संतान आदि सुखों से संपन्न होता है। वृश्चिक जातक बाधाओं का साहसपूर्वक सामना करते हैं तथा ऐसे जातक प्रायः किफायतसार एवं सोच समझकर खर्च करने वाले होते हैं। जातक आडम्बर दिखावा एवं प्रदर्शन में फिजूलखर्ची से यथासंभव परहेज करते हैं। परंतु अपने परिवार के हित की दृष्टि से उदारता से व्यय करते हैं। यदि शुक्र अष्टम या एकादश भाव में राहु सूर्य आदि ग्रहों से युक्त व दृष्ट हो तो जातक असंयमी, वस्त्रों, सौंदर्य प्रसाधन, एवं व्यसनों पर खर्च करने वाला होगा।

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प्रेम एवं वैवाहिक सुख वृश्चिक जातक/ जातिका प्रेम और रोमांस के संबंध में गंभीर, स्पष्टवादी एवं इमानदार होते हैं। प्रेम आकर्षण के बारे में भी जल्दबाजी नहीं करते अपितु भावनात्मक एवं बौद्धिक साम्यता को देख कर ही प्रेम प्रकट कर पाते हैं। परंतु जब एक बार किसी से प्रेम हो जाए तो पूरी गहराई एवं निष्ठा से निभाते हैं। शुक्र अशुभ होने की स्थिति में विवाह के उपरांत अपनी पत्नी को जीवन की सब सुख सुख सुविधाएं प्रदान करते हैं। वृश्चिक जातक की कुंडली में मंगल एवं शुक्र आदि शुभ हो तो जातक की पत्नी सुशील, ईमानदार, संतान आदि सुखोंसे युक्त तथा पति को प्रिय होगी। यदि मंगल-शुक्र की युति सप्तम, अष्टम या द्वादश में हो तो दांपत्य जीवन में वैमनस्य रहता है।

अनुकूल राशि से मित्रता  वृश्चिक जातक को सामान्य जीवन में, व्यवसाय के क्षेत्र में एवं वैवाहिक क्षेत्र में निम्न राशि वालों के साथ संबंध बनाने शुभ एवं लाभप्रद रहेंगे। परंतु विवाह संबंधों में अपने भावी जीवन साथी की राशि मैत्री की अतिरिक्त नक्षत्रों के गुण मिलान तथा कुंडली में मांगलिक दोष आदि का विचार भी कर लेना चाहिए। वृश्चिक जातक को मेष, वृष, कर्क, सिंह, कन्या, धनु और मीन राशि वाले जातकों के साथ विवाह, व्यवसाय आधी संबंध लाभप्रद होगा। वृश्चिक और मकर राशि वालों के साथ मध्यम तथा मिथुन, तुला, कुंभ राशि वालों के साथ संबंध विशेष लाभप्रद नहीं रहेंगे।

वृश्चिक लग्न की कन्या (जातिकाये)

वृश्चिक लग्न की कन्या सुंदर एवं लंबे मुखाकृति वाली पुष्ट एवं संतुलित शरीर लंबे हाथ, बड़ी व चमकीली आंखें आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली होंगी चलने में तेज, चुस्त एवं शीघ्रता लिए होगी।

नारी भवेद वृश्चिक लग्न जाता सुरूप गात्रा नयनाभिराम।

सुपुण्यशीला च पतिव्रता च गुणाधिकासत्यपरा सैदेव।।

अर्थात वृश्चिक लग्न में उत्पन्न कन्या श्रेष्ठ रूप वाली, सुंदर एवं आकर्षक नेत्रो वाली, सत्यपरायणा, शुभ कर्म करने वाली, अत्यधिक गुणों से संबंधित एवं अपने पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली होती है

इस लग्न का स्वामी मंगल होने से वृश्चिक जातिका परिश्रमी, साहसी, कुशाग्र बुद्धि, उद्यमी, स्पष्टवादी, कर्तव्यपरायण, ईमानदार, उदार हृदय, परोपकारी, आत्मविश्वासी एवं परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेने में कुशल होती है। यदि जन्म कुंडली में भाग्येश चंद्र व पंचमेश गुरु और सूर्य भी शुभस्थ हो तो जातिका उच्च शिक्षित, स्वाभिमानी, दृढ़ निश्चय, अर्थात मन में जो एक बार संकल्प कर लेती है उसे हर स्थिति में पूरा करने का प्रयास करती है। जातिका माता पिता के लिए भाग्यवान, मिलनसार, परोपकारी, अधिकार पूर्ण वाणी का प्रयोग करने वाली, आतिथ्य सत्कार करने में कुशल, व्यवहार कुशल तथा अपने उद्यम पर भरोसा करने वाली होगी, अपनी प्रतिष्ठा का विशेष ध्यान रखेगी, स्वाभिमानी होते हुए भी अनुकूल आचरण करने वाली, चरित्रवान, नैतिक मूल्यों का पालन करने वाली, उच्च संस्कारों से युक्त, कुछ हठी प्रकृति तथा विशेष गुणों से युक्त होगी। अपने गुणों के कारण परिवार एवं समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाली होगी। चंद्र शुक्र के प्रभाव से जातिका भ्रमण प्रिया होगी। परंतु इसमें अवगुण भी संभव है। अशुभ मंगल व शनि के प्रभाव स्वरूप जातिका शीघ्र उत्तेजित हो जाने वाली, क्रोधी, जिद्दी, स्वार्थी एवं कुछ आक्रमक एवं मूडी प्रकृति की होगी। अपने विरुद्ध किसी भी प्रकार की आलोचना एवं नुक्ताचीनी सहन ना करने वाली तथा स्वार्थी प्रवृत्ति की होगी। इसके अतिरिक्त अशुभ ग्रहों के प्रभाव से चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या ,शंका दोष देखना आदि अवगुण भी आ सकते हैं।

शिक्षा एवं कैरियर   वृश्चिक जातिका कुशाग्र बुद्धि परिश्रमी एवं क्रियात्मक प्रवृत्ति की होने से अपनी शिक्षा एवं कैरियर के प्रति विशेष गंभीर एवं सतर्क होगी। कुंडली में सूर्य चंद्र गुरु आदि ग्रह शुभस्थ (केंद्र त्रिकोण) में हो तो जातिका चिकित्सा क्षेत्र, विज्ञान, अध्यापन, वकालत, कानून, सरकारी विभाग, एकाउंट्स, इंजीनियरिंग, रसायन, ड्रेस डिजाइनिंग, ब्यूटी पार्लर, पुलिस, कंप्यूटर डिजाइनिंग, घरेलू साज सज्जा, ऑफिस क्लर्क एवं कंपनी प्रबंधक, टूरिज्म आदि कार्य जिसमें शारीरिक श्रम के साथ बौद्धिक योग्यता का भी उपयोग हो आदि में सफल हो सकती हैं।

आर्थिक स्थिति वृश्चिक लग्न की जातिकऔए भी जातको की ही भांति अत्यंत पराक्रमी और परिश्रमी, बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी तथा अपने लक्ष्य के प्रति सतर्क रहने के कारण व्यवसाय के किसी भी क्षेत्र में जहां परिश्रम उत्साह एवं जोखिम के कार्य हो वहां लाभ व उन्नति प्राप्त कर लेते हैं।

स्वास्थ्य एवं रोग वृश्चिक जातिका का स्वास्थ्य बाहरी तौर पर प्राय अच्छा ही रहता है। छोटी मोटी बीमारी को यह स्वीकार ही नहीं करती। परंतु कुंडली में मंगल, चंद्र, गुरु, शनि आदि ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो तो जातिका को रक्त विकार जननेंद्रिय संबंधी गुप्त एवं यौन रोग, अनियमित मासिक धर्म, फोड़े-फुंसी, पथरी, नजला जुकाम, उदर विकार, सिर पीड़ा, नेत्र आदि रोगों की संभावना होती है।

सावधानी  वृश्चिक जातिका को अत्याधिक प्रतिक्रियावादी नहीं होना चाहिए. क्रोध और उतावलेपन से भी परहेज करना चाहिए तथा अत्यधिक हठी और कटु आलोचना के स्वभाव को त्याग कर जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसके अतिरिक्त अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित भोजन व्यायाम तथा ईश्वर भक्ति की ओर ध्यान देना चाहिए।

प्रेम और वैवाहिक सुख  वृश्चिक पुरुष जातक की भांति वृश्चिक जातिका भी प्रेम और रोमांस के संबंध में अपने पार्टनर के प्रति अत्यंत गंभीर निष्ठावान एवं इमानदार होती हैं। अन्य कर्मों की भांति प्रेम में जल्दबाजी नहीं करती बल्कि पार्टनर का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं बौद्धिक स्तर देख कर ही प्रेम आकर्षण में समर्पित होती हैं। इनकी कुंडली में मंगल, गुरु, शुक्र एवं चंद्र की स्थिति अच्छी हो तो जातिका को उच्च शिक्षित सुंदर व्यक्तित्व संपन्न श्रेष्ठ गुणों से युक्त पति की प्राप्ति होती है। विवाह के उपरांत दांपत्य जीवन संतान आदि सुखों एवं सुख साधनों से संपन्न होगा। तथा जातिका स्वयं भी पति के परिवारिक जीवन में सब प्रकार से सहायता होती है। यदि कुंडली में सप्तम भाव एवं सप्तमेश शनि, सूर्य, केतु आदि क्रूर एवं अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातिका वैवाहिक जीवन में दुखी असंतुष्ट एवं परेशान रहती है।

अनुकूल जीवन साथी का चुनाव  वृश्चिक कन्या जातिका को मेष, वृष, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर ,मीन लग्न राशि वालों के साथ मैत्री एवं दांपत्य संबंध शुभ एवं लाभप्रद होंगे तथा वैवाहिक संबंध सुखद करने से पूर्व जन्म पत्रिका में पारस्परिक गुण मिलान अवश्य करवा लेना चाहिए।

वृश्चिक लग्न में दशा-अंतर्दशा का फल एवं अन्य शुभाशुभ ज्ञान

दशा अंतर्दशा के फल सभी ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा एवं प्रत्यंतर दशा आदि काल में शुभाशुभ फल देते हैं. जो ग्रह कुंडली में उच्च राशि या मित्र राशिस्थ हो तथा महादशा व अंतर्दशा स्वामी ग्रह परस्पर छठे, सातवे, आठवे या बारहवें भाव में स्थित ना होकर परस्पर पंचम, नवम, दशम तृतीय, एकादश भाव में स्थित हो वह ग्रह अपनी अंतर्दशा में धन लाभ, सोची हुई योजनाओं में सिद्धि एवं सौभाग्य में वृद्धि करते हैं। तथा जो ग्रह नीच शत्रु राशि या अस्त आदि अवस्था में हो वह अपनी दशा में धन हानि, रोग एवं कार्यों में अड़चन या असफलता प्रदान करते हैं।

वृश्चिकोदय संजातः शौर्यवान धनवान सुधि:।कुलमध्ये प्रधानश्च विवेकी सर्वपोषकः।।

असंतुष्टो नृपै: पूज्यो विघ्नकर्तान्य कर्माणि।शुभलक्षणसंयुक्तो गुप्तपापश्च विक्रमी।।

वृश्चिक जातक की कुंडली में केंद्र त्रिकोणस्थ शुभ हो तो सूर्य, चंद्र, गुरु अपनी दशा अंतर्दशा में प्रायः शुभ फल प्रदान करते हैं। सूर्य, चंद्र की दशा अंतर्दशा में व्यवसाय में धन लाभ व उन्नति भाग्य में वृद्धि तथा उच्च प्रतिष्ठित लोगों के साथ संपर्क बढ़ते हैं। शुभस्थ गुरु की दशा अंतर्दशा चले तो जातक को पारिवारिक सुख की प्राप्ति, उच्च विद्या में सफलता, धन लाभ, संतान सुख एवं धर्म-कर्म में रुचि होती है। मंगल की दशा में अड़चनों व बढ़ाओ के बाद कार्यो ने सिद्धि मिलती है। कुंडली में शनि शुभ या स्वयं क्षेत्रीय हो तो जातक को भूमि वाहन आदि सुखों की प्राप्ति होती है। चंद्र शुक्र की दशाओं में स्त्री सुख धन लाभ अल्प परंतु मनोरंजन एवं विलास आदि कार्यो पर खर्च अधिक होता है। राहु या बुध की दशा में बनते कार्यों में अड़चन, मन में चंचलता, विद्या में रुकावटें, अपव्यय एवं रोग, आदि होता है। राहु  3, 4, 6, 8, 11 भावो में तथा केतु 2, 5, 9, 10, 12 भाव में हो तो जातक को अपनी दशा अंतर्दशा में अचानक धन लाभ के अवसर तथा कार्यों में विघ्न के बाद सफलता प्रदान करते हैं। जबकि राहु केतु वृश्चिक लग्न के अतिरिक्त अन्य भावो में वृथा दौड़-धूप, निकट बंधुओं से तकरार, व्यवसाय में वइन व अपव्यवय आदि अशुभ फल देते हैं।

अनुकूल दिन रविवार, सोमवार, मंगल, गुरुवार एवं शुक्रवार शुभ एवं लाभप्रद रहेंगे। जबकि बुधवार एवं शनिवार इस राशि के लिए शुभ नहीं रहेंगे।

शुभ अंक 1, 2, 3, 4, 7 एवं 9 क्रमानुसार भाग्यशाली अंक माने जाते हैं। जबकि 5, 6 और 8 अंक क्रमशः कष्टकारी माने जाते हैं

भाग्योन्नतिकारक वर्ष वृश्चिक जाति की आयु के 25, 33, 35, 37 एवं 42 वा वर्ष विशेष भाग्य उन्नति कारक होता है।

शुभाशुभ ज्ञान एवं उपयोगी उपाय

शुभ रंग लाल गुलाबी पीला सफेद हल्का नीला संतरी पूरा

अशुभ रंग गहरा नीला हरा और काला

लग्न स्वामी: मंगल  लग्न तत्व: अग्नि   लग्न चिन्ह : मेढ़ा   लग्न स्वरुप: चर  लग्न स्वभाव: उग्र  लग्न उदय: पूर्व  लग्न प्रकृति: चित्त प्रकृति   जीवन रत्न: मूंगा  अराध्य: भगवन शिव,भैरों,हनुमान   लग्न  धातु: ताम्बा  अनुकूल रंग: लाल, क्रीम   लग्न जाति: क्षत्रिय  शुभ दिन: मंगलवार, रविवार शुभ अंक: 9  जातक विशेषता: तेजस्वी  मित्र लग्न : तुला,धनु, मकर   शत्रु लग्न : वृश्चिक, कन्या  लग्न लिंग: पुरुष

9 भौमस्य मन्त्रः – शारदाटीकायाम् ऐं ह्सौः श्रीं द्रां कं ग्रहाधिपतये भौमाय स्वाहा॥

10 मूंगा रत्न धारण करने से पहले इस बात का सबसे पहले ध्यान रखना चाहिए की  रत्न को उसी के नक्षत्र में धारण करना चाहिए । जैसे की मंगल का मूंगा को

मंगल के नक्षत्र में जैसे की मृगशिरा चित्रा धनिष्ठा में या मंगलवार या  मंगलपुष्य नक्षत्र धारण मंगल के होरे में धारण करना चाहिए इस बात ध्यान रखना चाहिए कि उस समय राहु काल ना हो

भौम ॐ अं अंङ्गारकाय नम: ।। ॐ हूं श्रीं भौमाय नम:।। मंगल: ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:ॐ अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यअयम। अपा रेता सिजिन्नवति ।

ॐ हां हंस: खं ख: ॐ हूं श्रीं मंगलाय नम: ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:”

ॐ अं अंगारकाय नम:  ॐ भौं भौमाय नम:

ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम । कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम ।। ॐ क्षिति पुत्राय विदमहे लोहितांगाय धीमहि-तन्नो भौम: प्रचोदयात

भाग्यशाली रत्न सोने अथवा तांबे की अंगूठी में मूंगा सवा आठ रत्ती का मंगलवार को शक्कर एवं शुद्ध जल मिश्रित गंगा जल में डालकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए कम से कम 8 बार डुबोये।

मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।। मूंगा रत्न स्वास्थ्य कौर मान प्रतिष्ठा की दृष्टि से शुभ रहता है उच्च विद्यालय सफलता के लिए सोने की अंगूठी में पुखराज पीले वर्ण का तर्जनी अंगूठी में रविवार को धारण करें। धारण करने से पूर्व मूंगे की भांति ही गंगा जल मिश्रित जल में शुद्ध कर ले पुखराज धारण के लिए मंत्र।

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।।

पुखराज को गुरुवार के दिन प्रातः गुरु के नक्षत्र विशाखा पुनर्वसु पूर्वाभाद्रपद तथा पुष्य नक्षत्र रिक्ता तिथि रहित शुभ तिथियों में धारण करना शुभ होता है अधिक जानकारी के लिए किसी

व्यवसाय व्यवसाय में तरक्की और लाभ के लिए माणक सुवर्ण की अंगूठी में रविवार को धारण कर सकते हैं।

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