माणिक – सिंह लग्न

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माणिक सब रत्नों का राजा माना गया है। इसके बारे में एक धारणा यह है कि माणिक की दलाली में हीरे मिलते हैं। कहने का मतलब यह रत्न अनमोल है।
यह रत्न सूर्य ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है और इसे सूर्य के कमजोर व पत्रिकानुसार स्थिति जानकर धारण करने का विधान है।

कीमत में इसका कोई मोल नहीं है, इसकी क्वॉलिटी पारदर्शिता व कलर पर निर्भर करता है इसका मूल्य। सबसे उत्तम बर्मा का माणिक माना गया है। यह अनार के दाने-सा दिखने वाला गुलाबी आभा वाला रत्न बहुमूल्य है।

इसकी कीमत वजन के हिसाब से होती है। यह बैंकॉक का भी मिलता है; लेकिन कीमत सिर्फ बर्मा की ही अधिक होती है। बाकी लेकिन बर्मा माणिक की कीमत । एक कैरेट 200 मिली का होता है व पक्की रत्ती 180 मिली की होती है।

माणिक को मोती के साथ पहन सकते हैं और पुखराज के साथ भी पहन सकते हैं। मोती के साथ पहनने से पूर्णिमा नाम का योग बनता है। जबकि माणिक व पुखराज प्रशासनिक क्षेत्र में उत्तम सफलता का कारक होता है। माणिक व मूंगा भी पहन सकते हैं, ऐसा जातक प्रभावशाली व कोई प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता पाता है।

इसे पुखराज, मूंगा के साथ भी पहना जा सकता है। पन्ना व माणिक भी पहन सकते है, इसके पहनने से बुधादित्य योग बनता है। जो पहनने वाले को दिमागी कार्यों में सफल बनाता है।

माणिक, पुखराज व पन्ना भी साथ पहन सकते हैं। माणिक के साथ नीलम व गोमेद नहीं पहना जा सकता है। सिंह लग्न में जब सूर्य पंचम या नवम भाव में हो तब माणिक पहनना शुभ रहता है। वृषभ लग्न में सूर्य केंद्र से चतुर्थ का स्वामी होता है अत: सूर्य की स्थितिनुसार इस लग्न के जातक भी माणिक पहन सकते हैं।

मेष, मिथुन, कन्या, वृश्चिक, धनु मीन लग्न वाले सूर्य की शुभ स्थिति में माणिक पहन सकते हैं।

माणिक को शुक्ल पक्ष के किसी भी रविवार को सुबह धारण कर सकते हैं।

सिंह लग्न है,,इस लग्न के स्वामी सूर्य,चौथे भाव वृश्चिक और नवम् भाव मेष के स्वामी मंगल और पंचम भाव धनु के स्वामी बृहस्पति की प्रबल मित्रता है। इसलिए इन्हीं के रत्न माणिक्य, मूंगा और पुखराज इस लग्न में पहने जा सकते हैं।

अशुभ आठवें भाव मीन के स्वामी बृहस्पति लग्न के स्वामी सूर्य के परम मित्र है और शुभ त्रिकोण पंचम भाव धनु के स्वामी होने के कारण इनके रत्न पुखराज को पहनना चाहिए। राहु और केतु सूर्य के उसी तरह शत्रु हैं जैसे शनि,शुर्क और बुध हैं। तीसरे और दसवें भाव के स्वामी शुर्क का रत्न हीरा, छठे और सातवें भाव के स्वामी शनि के रत्न नीलम को भी इस लग्न में पहनने से बचना चाहिए।

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आइये जानते हैं कि इस लग्न में किस रत्न से शुभ फल प्राप्त होगें।

माणिक्य-लग्न और प्रथम भाव सिंह के स्वामी सूर्य के रत्न माणिक्य को इस लग्नवाले को अवश्य पहनना चाहिए। जिन लोगों का सूर्य नीच राशि अथार्त तुला में है उन्हें तो हर हाल में माणिक्य पहनना चाहिए। जिन लोगों का मेष या सिंह का सूर्य है उन्हें माणिक्य नहीं पहनना चाहिए। सूर्य महादशा आने पर तो अवश्य पहने माणिक्य।

मोती-लग्न के स्वामी सूर्य के परम मित्र चंद्रमा के रत्न मोती को केवल कर्क राशि का चंद्रमा होने की दशा में सिर्फ चंद्र महादशा में ही पहना जा सकता है। ज्यादा गुस्सा आने पर प्रयोगधर्मी ज्योतिषी इसे बारहवें भाव का स्वामी होने के बावजूद हमेशा पहनने को कहते हैं। लेकिन निरीक्षण-परीक्षण करते रहना चाहिए मोती पहनने पर। खर्चा बढने की स्थिति में तुरंत उतार दें।

मूंगा-चौथे भाव वृश्चिक और नवम भाव मेष के स्वामी मंगल का इस लग्न में योगकारक कहा जाता है। इसलिए इसके रत्न मूंगे को माणिक्य के साथ पहनना चाहिए। मंगल की महादशा आने की स्थिति में इसे अवश्य पहनना चाहिए। लेकिन जिनका मंगल मेष,वृश्चिक और मकर का है उन्हें मूंगा नही पहनना चाहिए। दुर्धटना में बचाव भी करता है मूंगा।

पन्ना-दूसरे भाव कन्या और ग्याहरवें भाव मिथुन के स्वामी बुध के रत्न पन्ना को केवल बुध की महादशा आने की स्थिति में पहनने की सलाह देते हैं प्रयोगधर्मी ज्योतिषी। दूसरे भाव को मारक भी माना जाता है इसलिए सांसारिक भोग-विलास, भारी मात्रा में रूपया-पैसा देकर ये परेशान भी कर सकता है।

पुखराज-लग्न के रत्न माणिक्य के साथ बृहस्पति के रत्न पुखराज को कम से कम बृहस्पति की महादशा में तो अवश्य पहनना चाहिए। 

माणिक रत्न धारण करने से पहले इस बात का सबसे पहले ध्यान रखना चाहिए की  रत्न को उसी के नक्षत्र में धारण करना चाहिए । जैसे की सूर्य माणिक को  सूर्य के नक्षत्र में जैसे की कृतिका उत्तराफाल्गुनी उत्तराषाढा में या रविवार या रविपुष्य नक्षत्र धारण सूर्य के होरे में धारण करना चाहिए इस बात ध्यान रखना चाहिए कि उस समय राहु काल ना हो। 

ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।।
ॐ धृणि: सुर्य आदित्य: ॐ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सुर्याय नम:  ॐ आदित्याय विह्महे दिवाकराय धीमही तन्नो सुर्य प्रचोदयात् ! जप संख्या : 7000
प्रथमहि रवि कहं नावौ माथा। करहु कृपा जन जाति अनाथा।।
हे आदित्य दिवाकर भानू। मैं मति मन्द महा अज्ञानू।।
अब निज जन कहं हरहू कलेशा। दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।।

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